Navratri 2020 : 38 साल पहले 1982 में जिन लोगों ने इस अद्भुत दृश्य को देखा था, वे लोग इसे आज भी नहीं भूले हैं. जबलपुर में नर्मदा नदी में विसर्जन के लिए ले जाई गई विशालकाय माँ दुर्गा की प्रतिमा विसर्जित किए जाने के बाद धारा के बीचों-बीच में पहुंच खड़ी हो गई.
नदी का प्रवाह इतना प्रचंड था कि हाथी भी पैर न जमा सके, लेकिन दुर्गा माँ की प्रतिमा उस प्रचंड प्रवाह में चार दिनों तक खड़ी रही.
28 October, 1982 को पूर्वान्ह 11.30 बजे, तिथि एकादशी. मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित नर्मदा नदी के तट भेड़ाघाट पर दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन हो रहा था. इस बीच, दुर्गोत्सव समिति, पाटन की चमत्कारी मां दुर्गा कक प्रतिमा विसर्जन के लिए पहुंची.
पूजन-आरती के बाद माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया गया. किंतु यहां उपस्थित सैकड़ों लोगों ने तब जो देखा, वह देखकर उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं.
विसर्जन के बाद माँ दुर्गा की प्रतिमा पानी में नीचे तो गई, लेकिन पांच मिनट बाद ही ऊपर आ गई. फिर बहते हुए नदी के बीच धार में जा पहुंची और सीधी खड़ी हो गई. नर्मदा के उस प्रचंड प्रवाह के बावजूद दुर्गा माँ की प्रतिमा बीच धार में ऐसे थमी, जैसे किसी ने मंच बनाकर माँ की प्रतिमा स्थापित कर दिया हो.
यहां पर पानी का प्रवाह इतना तेज था कि हाथी भी पल भर को खड़ा न हो सके. किसी नाव अथवा गोताखोर का तो उस स्थान तक पहुंचना भी बहुत कठिन था. शाम होते तक आग की तरह यह खबर जबलपुर व आसपास के क्षेत्रों में फैल गई.
इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए दूसरे दिन तो हजारों लोगों का मेला उमर परा. माँ दुर्गा की प्रतिमा चार दिन यानी पूर्णिंमा तक वैसे ही प्रचंड धारा में खड़ी रही. तब तक लाखों लोगों द्वारा इस दृश्य को देखा जा चुका था.
भेड़ाघाट निवासी प्रत्यक्षदर्शी विजयसिंह ठाकुर बताते हैं की, यह घटना मेरे सामने घटी और उपस्थित अन्य लोगों की तरह ही मैं भी यह समझ नहीं पाया कि आखिर ऐसा हुआ कैसे? ऐसा कोई कारण भी नहीं था, जिससे कुछ समझा जा सके.
क्योंकि अन्य दुर्गा माता की प्रतिमाएं तो विसर्जन के बाद जलराशि में विलीन हो जा रही थीं, लेकिन यह प्रतिमा पहले ऊपर आई और फिर प्रचंड धारा के बीचों-बीच पहुंच कर वहां पर खड़ी हो गई. यही नहीं, माँ दुर्गा की प्रतिमा उस प्रचंड धारा में चार दिनों तक वैसे ही खड़ी रही. और उतनी भीड़ भेड़ाघाट में मैंने फिर कभी नहीं देखी.
उस दुर्गा प्रतिमा को शहर के जाने-माने मूर्तिंकार कुंदन ने बनाया था. कुंदन के बेटे नंदकिशोर प्रजापति ने बताया कि माँ दुर्गा की प्रतिमा के जलधारा में स्थापित होने को लेकर लोग कई तरहों के तर्क देते रहे.
कहा गया कि माँ दुर्गा की प्रतिमा के नीचे लगा पटिया पत्थरों में जा फंसा होगा. लेकिन ऐसा अन्य दुर्गा माँ की प्रतिमाओं के साथ तो नहीं हुआ और ना ही उसके बाद फिर कभी हुआ. इसीलिए मैं तो इस घटना को अद्भुत मानता हूं.
दुर्गोत्सव समिति का नाम भी किसी संयोग से कम न था, “चमत्कारी दुर्गोत्सव समिति” नंदकिशोर ने बताया कि इस घटना के उपरांत उनके पिता को न केवल प्रदेश बल्कि देशभर में बहुत ख्याति मिली, क्योंकि माँ दुर्गा की यह प्रतिमा थी भी अद्वितीय.
इसकी भावभंगिमाएं और सुंदरता प्रतिमा को जीवंत बना रही थीं. जलराशि पर स्थापित माँ दुर्गा की प्रतिमा की वह तस्वीर देश-दुनिया में प्रसिद्ध हो गया था.
माँ दुर्गा की प्रतिमा जब धारा में स्थापित हो गई और चार दिन में अनेक प्रयासों के बाद भी नहीं हटी, तब दुर्गोत्सव समिति सहित भक्तों ने तट पर ही विशेष पूजा-पाठ कर प्रार्थना किया. अंततः प्रतिमा स्वतः ही जलराशि में विलीन हो गई.