PATNA : रामविलास पासवान के निधन के बाद उनसे जुड़ी कई वाकये फिर से जीवंत हो गया हैं. खगड़िया के बेहद ही गरीब परिवार में जन्में रामविलास पासवान ने DSP की Naukri को ठुकरा कर समाज को बदलने का संकल्प लिए थे. अपने 53 सालों की सियासी सफर में उन्होंने कई मिसाल कायम कियें हैं.
डीएसपी की नौकरी छोड़ दी थी
खगड़िया के गरीब दलित परिवार में जन्म लेने के बाद इन्होंने काफी जद्दोजहद से उच्च शिक्षा हासिल की थी. पहले MA और फिर LLB किये थे. उस दौर में किसी भी संपन्न परिवार के युवकों के लिए भी इतनी शिक्षा हासिल करना सपने के माफिक होता था.
लेकिन रामविलास पासवान ने न सिर्फ उच्च शिक्षा हासिल किये बल्कि बढ़िया Sarkari Naukri भी पा लिए थे. उन्होंने DSP पद के लिए PSC की परीक्षा दिए थे और इस परीक्षा में उनका चयन भी हो गया था. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
रामजीवन सिंह ने सियासत में आने की प्रेरणा दी
दरअसल उस दौरान में बिहार की राजनीति बहोत अशांत थी. सरकारें मिलीजुली बनती थीं और कुछ समय बाद ही सरकारें गिर जाता. समाजवादियों का एक बड़ा तबका अपने सपनों को पूरी करने की कोशिश में लगा था.
तब समाजवादी विचारधारा के नेता रामजीवन सिंह की मुलाकात रामविलास पासवान से हुई थी जो राजनीति से दूर Police Officer बनने की तैयारी में जुटे थे. रामजीवन सिंह पासवान की प्रतिभा से बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुए और उन्हें पासवान को राजनीति में आने की सलाह दिए.
रामजीवन सिंह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में थे. उनके सहयोग से रामविलास पासवान राजनीति में आ गये और उन्होंने संसोपा के टिकट पर अलौली सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ा था और वे चुनाव जीत गये. इसके साथ ही रामविलास पासवान पुलिस अधिकारी के बजाय विधायक बन गये.
इसी दौरान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी यानि संशोपा का विघटन हो गया. रामविलास पासवान लोकदल से जुड़ गये. 1974 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में वे पूरे दमखम से शामिल हुए थे.
नतीजतन उन्हें जेल भी जाना पड़ा. इंदिरा सरकार के पतन के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया था. भारतीय राजनीति ने जब 1977 में नयी करवट ली तो पासवान बुलंदियों पर पहुंच गये.
1977 जनता पार्टी ने उन्हें में हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया था. उस वक्त रामविलास पासवान बिहार के एक साधारण नेता थे. उन्हें बहुत से लोग जानते तक नहीं थे. रामविलास पासवान ने कांग्रेस के उम्मीदवार बालेश्वर राम को 4 लाख 25 हजार 545 मतों के भारी अंतर से हराया था.
इस तरह रामविलास पासवान ने सर्वाधिक मतों से जीतने का एक नया भारतीय रिकॉर्ड बनाया था. इस उपलब्धि पर उनका नाम गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी शामिल किया गया. इस रिकॉर्ड जीत ने रामविलास पासवान को स्टार पोलिटिशियन बना दिया.
कांग्रेस के खिलाफ 1989 में एक बार फिर हवा बनी. मिस्टर क्लीन कहे जाने वाले राजीव गांधी के खिलाफ वी पी सिंह ने बोफोर्स का मुद्दा उठा कर राजनीति को एक बार पुनः नया मोड़ दे दिया.
कांग्रेसियों के खिलाफ जनमोर्चा तैयार हुआ. रामविलास पासवान 1989 के लोकसभा चुनाव में फिर से हाजीपुर लोकसभा सीट पर खड़ा हुए.
इस बार पासवान ने पुनः सर्वाधिक मतों से जीत कर अपने ही पुराने रिकॉर्ड को तोड़ दिया. रामविलास पासवान ने कांग्रेस के महावीर पासवान को 5 लाख 4 हजार 448 मतों के भारी अंतर से हराया था.
भारत में इसके पहले कभी भी कोई इतने मतों के अंतर से नहीं जीता था. इस तरह रामविलास पासवान देश के ऐसे एक मात्र नेता हैं जिन्होंने सर्वाधिक मतों से चुनाव जीतने का दो बार रिकॉर्ड बनाया.