सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि अगर महिला से शादी करने का किया गया वादा शुरू से झूठा हैं तो उसे रेप माना जा सकता है, अन्यथा यह रेप नहीं होगा.
शीर्ष अदालत ने अपना यह टिप्पणी कर रेप के एक अरोपी के खिलाफ दाखिल चार्जशीट को निरस्त करने का आदेश दिया है.
बता दें कि, यह मामला उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का हैं. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने अपना यह आदेश आरोपी सोनू की विशेष अनुमति याचिका पर दिया हैं.
सोनू ने अपने याचिका में एफआईआर और चार्जशीट को निरस्त करने का आग्रह किया था. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा हैं कि एफआईआर और चार्जशीट को पढ़ने भर से
और पीड़ित के बयान से यह साफ हैं कि जब दोनों के बीच संबंध बना था तब उसके तरफ से शादी करने का कोई इरादा नहीं था. और न ही यह कहा जा सकता हैं कि शादी करने का वादा झूठा था.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अभियुक्त और पीड़िता के बीच रिश्ता आपसी सहमति का था. वहीं दोनों इस रिश्ते में करीब डेढ़ वर्षों से थे. बाद में जब अभियुक्त ने शादी से मना किया तो उसके आधार पर एफआईआर दर्ज करवाया गया.
इस मामले में यह एफआईआर साफ कह रहा है कि अभियुक्त और शिकायतकर्ता के बीच संबंध एक साल से ज्यादा समय से था.
उसका अरोप हैं कि शादी के लिए अभियुक्त के परिजन राजी थे लेकिन अब वे लोग शादी के लिए मना कर रहे हैं. इससे यह लगता है कि उसकी एकमात्र शिकायत सोनू का उससे विवाह नहीं करना है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में शादी करने से मनाही बाद में किया गया है जिसके आधार पर यह एफआईआर हुआ है.
हमें लगता है कि इस मामले में रेप का कोई आरोप ही नहीं बनता है. क्योंकि यह सामने आया ही नहीं कि शादी का झूठा वादा करके सबंध बनाया गया हैं.
दो बातें सिद्ध करनी होंगी
पीठ ने कहा कि पीबी पवार बनाम महाराष्ट्र केस में हम यह तय कर चुके हैं कि धारा 375 के तहत महिला की सहमति कब और कैसे होगा. यह स्थापित करने के लिए दो बाते सिद्ध करना होगा
1. शादी करने का वादा झूठा होना चाहिए, वादा बुरे इरादे से दिया गया हो और अभियुक्त का वादा करने के समय से ही उसका उसे पूरा करने का कोई इरादा न हों.
2. और ये झूठा वादा बहुत नया हो और तुरंत ही किया गया हो अथवा इस वादे का महिला से संबंध बनाने के बारे में फैसला लेने से सीधा संबंध हो.